Saturday, December 26, 2009

नए सूरज का आह्वान

एक नए सूरज का आह्वान करता हूँ, अपनी समस्त ऊर्जा तेरे नाम करता हूँ,
पलों को दिनों की तरह जिया है जिसने, अपने भाग की थोड़ी जिन्दगी उसके नाम करता हूँ,
अवाक् रह गए हैं जो इस दुनिया की भीड़ में, दो कदम उनके साथ चलने का ऐलान करता हूँ,
पगडंडियों को रास्ते ना बना पाए जो बरसों से, मैं अपने सारे रास्ते उनके नाम करता हूँ,
सर्द हवा के झोंके से जिनकी रूह काँपे, अपने आराम के सारे लिहाफ आज ही उनके हाथ धरता हूँ,
रखता हूँ ये उम्मीद आप सभी से मैं, जो मैं ना कर पाऊं इस जन्म में अपने हाथों से,
वो सारे काम मैं आपके नाम करता हूँ.
बदसूरत हो चली इंसानियत को, चंगुल से तेरे छुड़ाने को, एक और नया साल तेरे नाम करता हूँ.
नमन करता हूँ नए साल को, चुनोतियाँ आने तो दो, देखो अगले साल मैं क्या धमाल करता हूँ.

Saturday, August 22, 2009

धोनो धान्ने पुष्पे भोरा आमादेर एयी बोशुन्धोरा
ताहार माझे आछे देश एक शोकोल देशेर शेरा
शे जे शोप्नो दिए तोइरी शे जे सृती दिए घेरा
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि

चोंद्रो शुर्जो ग्रोहो तारा, कोथाय उजोन एमोन धारा
कोथाय एमोन खेले तोरित, एमोन कालो मेघे
ओतार पाखिर डाके घूमिये पोरी पाखिर डाके जेगे
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि


एतो स्निग्धो नोदी ताहार, कोथाय एमोन धूम्रो पाहार
कोथाय एमोन होरित खेत्रों आकाश तोले मेषे
एमोन धानेर ओपोर धेऊ खेले जाय, बाताश ताहार देशे
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि

पुष्पे पुष्पे भोरा शाखी, कुंजे कुंजे गाहे पाखी
गुन्जोरिया अशे ओली, पुन्जे पुन्जे धेये
तारा फूलेर उपोर घूमिये पोरे फूलेर मोधू खेये
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि

भायेर मायेर एतो स्नेहो, कोथाय गेले पाबे केहो
ओ माँ तोमार चोरोन दूटी बोक्खे आमार धोरी
आमार एई देशेटे जोन्मो जेनो एई देशेटे मोरी
आमार एई देशेटे जोन्मो जेनो एई देशेटे मोरी
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि

धोनो धान्ने पुष्पे भोरा आमादेर एयी बोशुन्धोरा
ताहार माझे आछे देश एक शोकोल देशेर शेरा
शे जे शोप्नो दिए तोइरी शे जे सृती दिए घेरा
एमोन देष्टि कोथाओ खुजे पाबे नाको तुमि
शोकोल देशेर रानी शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि
शे जे आमार जोंमोभूमि शे जे आमार जोंमोभूमि

Dwijendralal Roy in the late 19th century

Monday, August 3, 2009

घर की बाड़

हवाओं से ये कैसे बयान आने लगे, घर की बाड़ ही अब घर को खाने लगे.
रौशनी थी जिनके घरों में, वो लोग दूर से ही हमें जाने पहचाने लगे
जिन जज्बातों को बयान करने में लग जाती थी सदियाँ
वो हर हफ्ते रोजाना दिखलाये जाने लगे.
जिसके कंधे पर रख कर शिकार करने वाले, अब
खुद उन्ही कन्धों की ताकत से घबराने लगे.
जो कहकहे कभी एक परिवार में गूंजते थे कभी
वो आजकल कुछ कारोबारी वख्वों के बीच दिखलाये जाने लगे.
सच बोलने के और उस पर टिकने के लिए जो मशहूर थे,
उनकी सीरत के नोटों के लालच में सच बुलवाए जाने लगे
आम आदमी की चुनोतियों से किनारा किये कुछ लोग,
घने जंगल में जूझने को बुलाये जाने लगे.
टीआरपी की होड़ में, न जाने कितने सच झूठ में,
और झूठ सच में तोड़ मरोड़ कर दिखलाये जाने लगे.
हवाओं से ये कैसे बयान आने लगे, घर की बाड़ ही अब घर को खाने लगे.
धर्मेन्द्र
३० जुलाई २००९

अपनी छाप

जिन्दगी एक सफ़र की शक्ल में तब्दील हो गयी है,
मंजिल को पाने की चाह न जाने कहाँ खो गयी है
माथे से फूट कर जो आती थी पसीने की बूँदें,
शिकन की सिलवटों में सहम के कहीं सो गयी हैं
बिलखते पाँव के छालों ने भी अपनी नियति समझ ली है,
उनकी चीख, सहरा की रेत में अपनी छाप में ही दुबक कर सो गयी है
सौगात सी दिखने वाली चेहरे की हँसी को, कल की चिंता अपने पहलु में डुबो गयी है
ये जिन्दगी क्या थी क्या हो गयी है, मंजिल को पाने की चाह कहाँ खो गयी है?
धर्मेन्द्र
२७ जुलाई 2009

Friday, May 22, 2009

कंचों की चमक

कांच की गोलियों को इक्कठा करते, छुपाते, इतराते, बहकाते
कुर्सी की दौड़ में टांग खींचते, मंत्रणा करते, बहलाते, फुसलाते
छिटक के दूर होते फिर पास आते, मिमियाते और गरियाते
झुलसती धूप से बचने के लिए, छोटे बड़े आशियाने बनाते,
रनों की बौछार करते, कैच लपकते और विकेट चटखाते,
असल दोस्तों से दूर भागते, अदृश्य रिश्ते बनाते,
पारदर्शिता के बावजूद हर एक संपर्क को सहेजते
कांच की गोलियों की मानिंद, उसे हर दांव में लगते
हीरे की साख कम पड़ गयी है इन कांच के कंचों की चमक में!
धर्मेन्द्र
22.मई 2009

Wednesday, April 22, 2009

Nebulae or a star?

Mother is a nebulae or a star?
Ever since I saw in clear sky,
am in this thought.

Just like a carved stone,
Thinking today
only about you my mother.

Nebulae is not a life generator
Just a mixture of gas and dust
Star, you are a pure star..

In cold dark freezing nights,
sparkling far far away, spreading light
a rare source of light for me

From buying a school bag to....
giving me a hug
in my school balcony.. on my mother.

Keeping me your lap, sitting near to clay oven
cooking food and carrasing me
laying on death bed
Counting last breaths, waiting for me...
how can you be a nebulae?

As drolmakyab says truely,
giving shape to each rough stone
mother like flowing river.....

You are the one sparkling star in the sky
and I am your small part, looking at you
with same love and expectation,
that you will hug me in your lap as usual

लम्हे लम्हे

लम्हे लम्हे में हाथ से फिसलती जिन्दगी,
हर एक साँस और अहसास में बदलती जिन्दगी
तुजुर्बों के बण्डल से लद्द्पद्द, बहकती संभालती जिन्दगी
पाखण्ड, सच्चाई, तिलिस्म, मदहोशी, बेबसी, फ़िक्र, उम्मीद, अपनापन, बेचैनी .....
ये वो घर हैं जिनसे ना जाने हर रोज़, ठिठकती, दोचार होती, ठहरती, पाँव रगड़ती
गुजरती चली जाती है, लम्हे लम्हे में हाथ से फिसलती ये जिन्दगी.