लम्हे लम्हे में हाथ से फिसलती जिन्दगी,
हर एक साँस और अहसास में बदलती जिन्दगी
तुजुर्बों के बण्डल से लद्द्पद्द, बहकती संभालती जिन्दगी
पाखण्ड, सच्चाई, तिलिस्म, मदहोशी, बेबसी, फ़िक्र, उम्मीद, अपनापन, बेचैनी .....
ये वो घर हैं जिनसे ना जाने हर रोज़, ठिठकती, दोचार होती, ठहरती, पाँव रगड़ती
गुजरती चली जाती है, लम्हे लम्हे में हाथ से फिसलती ये जिन्दगी.
Wednesday, April 22, 2009
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